Sunday, July 24, 2022

कविता | वेदना | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Vedna | Subhadra Kumari Chauhan



 दिन में प्रचंड रवि-किरणें

मुझको शीतल कर जातीं।

पर मधुर ज्योत्स्ना तेरी,

हे शशि! है मुझे जलाती॥


संध्या की सुमधुर बेला,

सब विहग नीड़ में आते।

मेरी आँखों के जीवन,

बरबस मुझसे छिन जाते॥


नीरव निशि की गोदी में,

बेसुध जगती जब होती।

तारों से तुलना करते,

मेरी आँखों के मोती॥


झंझा के उत्पातों सा,

बढ़ता उन्माद हृदय का।

सखि! कोई पता बता दे,

मेरे भावुक सहृदय का॥


जब तिमिरावरण हटाकर,

ऊषा की लाली आती।

मैं तुहिन बिंदु सी उनके,

स्वागत-पथ पर बिछ जाती॥


खिलते प्रसून दल, पक्षी

कलरव निनाद कर गाते।

उनके आगम का मुझको

मीठा संदेश सुनाते॥


No comments:

Post a Comment

Fairy Tale | The Fir-Tree | Hans Christian Andersen

Hans Christian Andersen The Fir-Tree Out in the woods stood a nice little Fir-tree. The place he had was a very good one; the sun shone on h...