Wednesday, March 30, 2022

लघुकथा। देवी। Devi | मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand


रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खड़ा था। सामने अमीनुद्दौला पार्क नींद में डूबा खड़ा था। सिर्फ़ एक औरत एक तकियादार बैंच पर बैठी हुई थी। पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फ़कीर खड़ा राहगीरों को दुआएं दे रहा था। 'ख़ुदा और रसूल का वास्ता......राम और भगवान का वास्ता..... इस अंधे पर रहम करो।'

सड़क पर मोटरों और सवारियों का ताँता बन्द हो चुका था। इक्के–दुक्के आदमी नज़र आ जाते थे। फ़कीर की आवाज़ जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज़ में से कुछ कहकर एक तरफ़ चली गयी। फ़कीर के हाथ में काग़ज़ का टुकड़ा नज़र आया जिसे वह बार-बार मल रहा था। क्या उस औरत ने यह काग़ज़ दिया है?

यह क्या रहस्य है? उसके जानने के कोतुहल से अधीर होकर मैं नीचे आया और फ़कीर के पास खड़ा हो गया।

मेरी आहट पाते ही फ़कीर ने उस क़ाग़ज़ के पुर्जे को दो उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया। और पूछा, "बाबा, देखो यह क्या चीज़ है?

मैंने देखा– दस रुपये का नोट था ! बोला, "दस रुपये का नोट है, कहां पाया?"

फ़कीर ने नोट को अपनी झोली में रखते हुए कहा, "कोई ख़ुदा की बन्दी दे गई है।"

मैंने और कुछ न कहा। उस औरत की तरफ़ दौड़ा जो अब अँधेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी।

वह कई गलियों में होती हुई एक टूटे–फूटे गिरे-पड़े मकान के दरवाज़े पर रुकी, ताला खोला और अन्दर चली गयी।

रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मैं लौट आया।

रात भर मेरा जी उसी तरफ़ लगा रहा। एकदम तड़के मैं फिर उस गली में जा पहुँचा। मालूम हुआ, वह एक अनाथ विधवा है।

मैंने दरवाज़े पर जाकर पुकारा, "देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ।" औरत बाहर निकल आयी। ग़रीबी और बेकसी की ज़िन्दा तस्वीर, मैंने हिचकते हुए कहा, "रात आपने फ़कीर को......"

देवी ने बात काटते हुए कहा, "अजी, वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।"

मैंने उस देवी के क़दमों पर सिर झुका दिया।


No comments:

Post a Comment

Fairy Tale | The Fir-Tree | Hans Christian Andersen

Hans Christian Andersen The Fir-Tree Out in the woods stood a nice little Fir-tree. The place he had was a very good one; the sun shone on h...